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रवि रुद्र पितामह विष्णु नुतं - सरस्वती वन्दना |
रवि रुद्र पितामह विष्णु नुतं - सरस्वती वन्दना (Ravi rudra pitamah vishnu nutam - Saraswati Vandana)
।। सरस्वती वन्दना ।।
रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं,
हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्!
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं,
तव नौमि सरस्वति ! पाद-युगम्।।१
रवि, रूद्र, पितामह(ब्रह्माजी) और विष्णु जी के द्वारा नमस्कृत; हरिचंदन और कुंकुम के लेप से युक्त; मुनियों के समूह और गजेन्द्र द्वारा समान रूप से आवृत; हे सरस्वती मां ! आपके चरणकमलों को मैं नमन करता हूं।
शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं,
शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।२
चन्द्रमा के चाँदनी के शुद्ध अमृत तथा हिम की शीतलता से युक्त; शीतकाल के अम्बर पर पड़ते हुए प्रतिबिम्ब के सदृश करों से युक्त; बहुत से रत्नों की कान्ति से युक्त; हे सरस्वती मां ! आपके चरणकमलों को मैं नमन करता हूं।
कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं,
भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।३
मैं सरस्वती के स्वर्ण-कमल-सुशोभित चरणों को नमन करता हूं, जो शरण और सुरक्षा प्रदान करते हैं। वे प्रबुद्ध प्राणियों द्वारा पूजनीय हैं और सांसारिक भेदों से परे हैं, जो सत्य के सार को दर्शाते हैं।
मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं,
सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विश्वमनेक-भवं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।४
मैं सरस्वती के चरणों को प्रणाम करता हूं, जो संसार के सागर में डूबने के भय को दूर कर देते हैं। वे समर्थन और समृद्धि प्रदान करते हैं, पवित्रता और सर्वोच्च पवित्रता बिखेरते हैं।
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं,
विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलायित-चन्द्र-शिवं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।५
मैं बुद्धिहीनों और अज्ञानियों की शरणस्थली सरस्वती के पवित्र चरणों को प्रणाम करता हूँ। उसका दिव्य सार सभी धर्मग्रंथों के ज्ञान को समाहित करता है और ब्रह्मांड को अनगिनत अभिव्यक्तियों से भर देता है।
भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं,
प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।६
मैं पूर्ण इच्छाओं के भंडार सरस्वती के दिव्य चरणों को नमन करता हूं। वह सर्वोच्च सत्य का ज्ञान प्रदान करती है और दिव्य युवतियों द्वारा उसकी सेवा की जाती है।
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं,
परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तमं, तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।७
मैं दिव्य मुकुटों पर रत्नों के समान दीप्तिमान सरस्वती के चरणों को प्रणाम करता हूँ। वे सांसारिक मोह-माया के महान भय को दूर करते हैं और चंद्रमा की शांत चमक से चमकते हैं।
गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं,
गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,
तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।८
मैं समस्त सद्गुणों की आधारिणी सरस्वती के कोमल कमल-सदृश चरणों को प्रणाम करता हूँ। उनके पैर सत्य का प्रतीक हैं और अपने गुणों की चमक से श्रद्धा को प्रेरित करते हैं।
Ravi Rudra Pitamah Vishnu Nutam - Saraswati Vandana| सरस्वती वन्दना | Vasant Panchami
Singer: Amrita Chaturvedi UpadhyayLyrics: Shri Ramcharitmanas (Gita Press)
Music: Rohit Kumar (Bobby)
Flute: Pt. Ajay Shankar Prasanna
Sitar: Pt. Sunil Kant