कामाख्या चालीसा - जय महाशक्ति कामाख्ये (Kamakhya Chalisa - Jai Mahashakti)
कामाख्ये बरदे देवी नील पर्वत वासिनी ,
त्वँ देवी जगताँ मातर्थोनिमर्दे नमोस्तुते ।।
कमाख्ये कामसम्पने कामेश्वरी हरि प्रिये ,
कामनाँ देहि मे नित्यँ कामेश्वरी नमोऽसुतुते ।।
।। श्री कामाख्या चालीसा ।।
जय महाशक्ति कामाख्ये, नावहुँ तब पद नाथ ,
कष्ट हरणि मँगल करनी, सदा रहहु मम साथ,
सर्व जगशक्ति महा , कामाख्ये जगदम्ब ,
षट विकार मुझमे भरे पनहु मात अवलम्ब ,
जय जय जय कामाख्या देवी ,
सुर नर,असुर , नाग जग सेवी, ।।1।।
सृजन कारिणी विश्व विधात्री ,
जग सँहारिणी सब सुख देत्री ।।2।।
क्ति कहाँ जो तुम गुण गावै ,
शरण गहै जन सर्वस पावै ..
सती कीन्ह मख प्राण विसर्जन ,
ले शव चले पुरारी निरजँन ,
चिन्मय सती देस शिव परसे ,
दिव्य शक्ति सब शव बीच बरसे,
हरि तब तर्केउ विश्व विनाशा .
भजेउ चक्र सती सब पासा ,
काटा पँच दशक एक खण्डा ,
अँश गिरा प्रगटे बरिबँडा ,
महा भाग ( योनिमुद्रा) निलाचल परेउ,
धन्य भाग जन जन सब तरेउ,।।8।।
ऋद्धि सिद्धि धारी विभूति अनुपा,
महाशक्ति कामाख्या रूपा,
जल थल नभ रवि शशि ग्रह तारा ,
कण कण तेजो ज्वल जग सारा ,
मातु नाम है तोर अन्नता ,
श्रुति पुराण सब गावहि सँता ,
तु निराकार है शक्ति स्वरूपा,
लीला हेतू धरत सब रूपा ,
शैलपुत्रि तु ब्रह्म चिरिणी ,
चामुण्डा तु क्लेश हारिणी ,
तु कात्यायनी काल रात्री ,
स्कन्ध माते तु सिद्धि दात्री ,
तु ही चँद्रघटा घट वासिनी ,
महागोरी तु गौरव हासिनी ,
तु ही देवी ललिता माता ,
हे वैष्णवी सब सुख दाता ,
तु धुमावती कमला काली ,
छिन्नमस्ता हो जगत सुपाली ,
बगलामखी भुवनेश्वरी तारा ,
षोडषी भरवी कष्ट निवारा,
माँतगी सावित्री माता ,
तु कल्याणी सब जग त्राता,
ज्वालामुखी शीतला अम्बा ,
विन्ध्यवासिनी तु जगदम्बा ,
त नन्दा मुम्बा मिनाक्षी ,
मनसा मौलाक्षी कामाक्षी ,
गायत्री दुर्गा सन्तोषी,
मूल प्रकृति त्रिभूवन पोषी ,
नाना शस्त्र मातु है तेरे,
विधि हरिहर सुर मुनि चेरे ,
पुण्य पाप सब सुख दुख अँशा ,
पुरण करो मात मम मँशा ,
मातु मोर अब कीजै रक्षा ,
सहश होत नही और परीक्षा ,
हरहु मातु मम विपदा भारी,
तुम तजि अब मै केह निहारी ,
सुर सरि तजि चह कुप खनावा ,,
तजि पियुष खार जल पाऔ ,
तृण न हिलै मातु बिन चाहे,
महाशक्ति तजो पुजो काहे ,
कैस्हहु विप पडे बड भारी ,
नाम लेत दु: ख देत निवेरी,
निर्धन पुत्र हीन जौ जाई ,
धरै ध्यान कामाख्या माई,
सँकट कटन न होत विलम्बा ,
रण भू बीच वह बनै अवलम्बा,
कल रोग भागै सुनि नामा ,
ऋद्धि सिद्धि दे पुरवहु कामा ,
कामाख्या को क्षत्र चढावै,
धुप दीप जो रोज जलावै ,
नारियल चुन्री और प्रसादा,
साडी कमल और कन्या ज्योनारा ,
अम्बुवाची पावन लीला ,
माँ का दरशन करै जो शीला,
कोटि लिँग भुनेश्वरी भवानी,
दस महाविद्या का प्रियतम पावन ,
गुप्त नवरात्र मे भर दे आँगन ,
गुरू वशिष्ट और मच्छेन्द्र नाथ गावै ,
इसामाइल , उमानाथ भी माँ माँ गावै ,
उँच्ची निलाचल गगन पसारा ,
ब्रह्म पुत्र और शुकेश्वर धारा ,
नीलाचल सर्व शिखर अपारा,
नरकासुर को श्री कृष्ण पछारा,
पाठ करै जो नित चालीसा ,
पावै सुफल साक्षी जगदीशा,
विविध मनोरथ प्राग्यज्ययोतिष पुर पाई ,
धन जन मन दे कामाख्या माई ,
सत रड तम तीनो गुण तेरे ,
अवगुण हरहु मात सब मेरे ,
तँत्र सिद्धि मौक्ष दायिनी ,
माँ कामरूप पाप विनाशिनी ,
कालिका पुराण तेरे गुण गावै ,
रामदेव को शरण लगाऔ ,
हम भक्तो को हरष जगाऔ ,
सुत चाहे जैसा रहे - मातु तजहु नही साथ ,
भोला भाला तेरा लाल है तोह नवात माथ ,
जय माँ कामख्या ।
जय क्षिप्र गण नाथ जी ।
कोटि कामना लिँग बाबा जी , निलाचल पहा