अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा Apara / Achala Ekadashi Vart Katha

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अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा Apara / Achala Ekadashi Vart Katha
अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा

।। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष ।।
अपरा (अचला) एकादशी परिचय, व्रत कथा
Apara (Achala) Ekadashi Vrat Katha

अचला एकादशी, जिसे वैकुंठ एकादशी या मोक्षदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक उपवास है। अपरा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, और ऐसा माना जाता है कि यह पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति प्रदान करती है, भक्तों को नरक के दर्शन से बचाती है, और उनके लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती है। अचला एकादशी पर, भक्तगण 24 घंटे का उपवास रखते हैं, प्रार्थना, भजन और जप करते हैं, और गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन दान करते हैं। कहा जाता है कि यह उपवास करने से 1000 अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है और इसके परिणामस्वरूप जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति मिलती है।

अपरा एकादशी परिचय

ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इसे अचला एकादशी भी कहते है। इस एकादशी का व्रत करने से ब्रह्मा हत्या, गोत्र की हत्या, गर्भस्थ शिशु हत्या जैसे नीर कष्ट कर्मों से मुक्ति मिल जाती है।
     महाराज युधिष्ठर ने कहा हे योगेश्वर ! भगवान श्री हरी ! आपके श्री मुख से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात मोहिनी एकादशी कथा श्रवण कर अर्न्तमन तक तृप्त हो गया, किन्तु हे श्री कृष्ण ! अब आप ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी की कथा कहने की कृपा करें।
     श्री कृष्ण ने कहा इस एकादशी को "अपरा" एकादशी भी कहते हैं। हे धर्मराज ! लोकहित के लिए इस एकादशी का महत्व व कथा कहता हूँ। हे युधिष्ठर ! जीवन के अनिवार्य सत्य मृत्यु को सभी मनुष्य मात्र जानते हुए भी चाहे या अनचाहे अनेकों पाप कर्मों को करता रहता है। हत्या पर निन्दा, परस्त्री गमन, झूठ बोलना, चोरी, ठगी, कपट करना, आदरणीयों का अनादर आदि अनेक पाप कर बैठता है। फिर कभी किसी सुकर्म के फल से या सत्संग अनायास ही सप्रयास प्राप्त हो जाने से इन बुरे कर्मों के फल से मुक्ति पाना चाहता है तो एकादशी व्रत को करके विष्णु भगवान का पूजन करने से उत्तम कोई उपाय नहीं है। इनमें अपरा एकादशी का व्रत अधिक श्रेष्ठ है। यह व्रत पाप रुपी कंटीले वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान है । इसकी कथा इस प्रकार है-

अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा

महिध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था, जिसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई राजा से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और उसकी देह को जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु से मरने के कारण मृत्यु के उपरान्त वह राजा प्रेतात्मा बन गया और राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को प्रेतात्मा परेशान करती। 
एक दिन धौम्य नामक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने व उत्पात करने का कारण जान लिया। दयालु ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और राजा दिव्य शरीर वाला होकर स्वर्ग चला गया। इसे अचला एकादशी भी कहते है।

अपरा एकादशी व्रत का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि जो फल मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से या अर्ध प्रसूता गौदान से, कार्तिक पूर्णिमा पर त्रिपुष्कर में स्नान करने, गंगा तट पर पितरों का पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।
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नारायण आरती - ॐ जय जगदीश हरे ॥

Video: अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा


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