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| जय राम सदा सुख धाम हरे |
जय राम सदा सुख धाम हरे (Jai Ram Sada Sukhdham Hare - Shriram Stuti) | Ramcharitmanas | Lanka Kand
राम चरित मानस मे गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा सुसज्जित की गई लंकाकाण्ड की एक राम स्तुति -
जय राम सदा सुखधाम हरे।
रघुनायक सायक चाप धरे।।
भव बारन दारन सिंह प्रभो।
गुन सागर नागर नाथ बिभो।।
हे नित्य सुखधाम और (दुःखों को हरने वाले) हरि ! हे धनुष-बाण धारण किये हुये रघुनाथ जी ! आपकी जय हो | हे प्रभो ! आप भव (जन्म-मरण) रूपी हाथी को विदीर्ण करने के लिए सिंह के समान हैं | हे नाथ ! हे सर्वव्यापक ! आप गुणों के समुद्र और परम चतुर हैं |
तन काम अनेक अनूप छबी।
गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी।।
जसु पावन रावन नाग महा।
खगनाथ जथा करि कोप गहा।।
आपके शरीर की अनेक कामदेवों के समान, परन्तु अनुपम छवि है | सिद्ध, मुनीश्वर और कवी आपके गुण गाते रहते हैं | आपका यश पवित्र है | आपने रावणरूपी महासर्प को गरुण की तरह क्रोध करके पकड़ लिया |
जन रंजन भंजन सोक भयं।
गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं।।
अवतार उदार अपार गुनं।
महि भार बिभंजन ग्यानघनं।।
हे प्रभो ! आप सेवकों को आनंद देने वाले, शोक और भय का नाश करने वाले, सदा क्रोध रहित और नित्य ज्ञानस्वरूप हैं | आपका अवतार श्रेष्ठ, अपार दिव्य गुणों वाला, पृथ्वी का भार उतारने वाला और ज्ञान का समूह हैं |
अज ब्यापकमेकमनादि सदा।
करुनाकर राम नमामि मुदा।।
रघुबंस बिभूषन दूषन हा।
कृत भूप बिभीषन दीन रहा।।
आप नित्य, अजन्मा, अद्वितीय और अनादि हैं | हे करुणा की खान श्रीराम जी ! मैं सहर्ष आपको नमस्कार करता हूँ | हे दूषण राक्षस को मारने वाले तथा समस्त दोषों को हरने वाले विभीषण दीन था, आपने उसे लंका का राजा बना दिया |
गुन ग्यान निधान अमान अजं।
नित राम नमामि बिभुं बिरजं।।
भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं।
खल बृंद निकंद महा कुसलं।।
हे गुण और ज्ञान के भण्डार ! हे मानरहित ! हे अजन्मा ! व्यापक और मायिक विकारों से रहित श्रीराम !
मैं आपको नित्य नमस्कार करता हूँ | आपके भुजदंडों का प्रताप और बल प्रचंड है | दुष्टसमूह का नाश करने में आप परम निपुण हैं |
बिनु कारन दीन दयाल हितं।
छबि धाम नमामि रमा सहितं।।
भव तारन कारन काज परं।
मन संभव दारुन दोष हरं।।
हे बिना ही कारण दीनों पर दया करने वाले और उनका हित करने वाले हे शोभा के धाम ! मैं श्री जानकी जी सहित आपको नमस्कार करता हूँ | आप भवसागर से तारने वाले हैं, कारणरूपा प्रकृति और कार्यरूप जगत् दोनों से परे हैं और मन से उत्पन्न होने वाले कठिन दोषों को हराने वाले हैं |
सर चाप मनोहर त्रोन धरं।
जलजारुन लोचन भूपबरं।।
सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं।
मद मार मुधा ममता समनं।।
आप मनोहर बाण, धनुष और तरकस धारण करने वाले हैं | कमल के समान रक्तवर्ण आपके नेत्र हैं | आप राजाओं में श्रेष्ठ, सुख के मंदिर , सुन्दर, श्री (लक्ष्मी जी) के वल्लभ, मद, काम और झूठी ममता के नाश करने वाले हैं |
अनवद्य अखंड न गोचर गो।
सबरूप सदा सब होइ न गो।।
इति बेद बदंति न दंतकथा।
रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।।
आप दोषरहित हैं, अखंड हैं तथा इन्द्रियों के विषय नहीं हैं | सदा सर्वरूप होते हुये भी आप वह सब कभी हुये ही नहीं | ऐसा वेद कहते हैं और ये कोई कल्पना नहीं है | जैसे सूर्य और सूर्य का प्रकाश अलग -अलग हैं और अलग नहीं भी हैं वैसे ही आप भी संसार से भिन्न तथा अभिन्न दोनों ही हैं|
कृतकृत्य बिभो सब बानर ए।
निरखंति तवानन सादर ए।।
धिग जीवन देव सरीर हरे।
तव भक्ति बिना भव भूलि परे।।
हे व्यापक प्रभो! ये सब वानर कृतार्थरूप हैं | जो ये आदरपूर्वक आपका मुख देख रहे हैं | हे हरे ! हमारे (अमर) जीवन और देव (दिव्य) शरीर को धिक्कार है, जो हम आपकी भक्ति से रहित हुये संसार में(सांसारिक विषयों में) भूले पड़े हैं |
अब दीन दयाल दया करिऐ।
मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ।।
जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ।
दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ।।
हे दीनदयालु ! अब दया कीजिये और मेरी उस विभेद उत्पन्न करने वाली बुद्धि को हर लीजिये, जिससे मैं विपरीत कर्म करता हूँ और जो दुःख है, उसे सुख मानकर आनंद से विचरता हूँ |
खल खंडन मंडन रम्य छमा।
पद पंकज सेवित संभु उमा।।
नृप नायक दे बरदानमिदं।
चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं।।
आप दुष्टों का खंडन करने वाले और पृथ्वी के के रमणीय आभूषण हैं| आपके चरण कमल श्री शिव-पार्वती द्वारा सेवित हैं | हे राजाओं के महाराज ! मुझे यह वरदान दीजिये की आपके चरणकमलों में सदा मेरा कल्याणदायक (अनन्य) प्रेम हो |
जय राम सदा सुख धाम हरे । Jai Ram Sada Sukhdham Hare | Shriram Stuti | Ramcharitmanas | Lanka Kand
Singer: Amrita Chaturvedi UpadhyayLyrics: Traditional
Music: Rohit Kumar (Bobby)
