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| मीनाक्षी पञ्चरत्नम् |
मीनाक्षी पञ्चरत्नम् (Meenakshi Pancharatnam - Adi Shankaracharya)
देवी मीनाक्षी माता पार्वती का ही एक रूप हैं जिनका तमिलनाडु के मदुरै मे प्रसिद्ध मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर हैं। मीनाक्षी पञ्चरत्नम् एक शक्तिशाली देवी मीनाक्षी की स्तुति है, जिसमें देवी के गुणों का वर्णन पाँच छंदों में किया गया है और इसे आदि शंकराचार्य जी ने लिखा है। मीनाक्षी पञ्चरत्नम् को हिंदी अनुवाद के साथ यहां पढ़े।
॥ मीनाक्षी पञ्चरत्नम् ॥
उद्यद्भानु सहस्रकोटिसदृशां केयूरहारोज्ज्वलां
बिम्बोष्ठीं स्मितदन्तपंक्तिरुचिरां पीताम्बरालंकृताम् ।
जो उदय होते हुए सहस्रकोटि सूर्यों के समान आभा वाली हैं, केयूर और हार आदि आभूषणों से उज्जवल प्रतीत होती हैं, जिनके अधर बिम्बाफल की भांति लाल हैं, जो अपनी मधुर मुस्कान युक्त दन्तावलि से सुन्दरी मालूम होती हैं तथा पीले वस्त्र से अलंकृता हैं;
विष्णुब्रह्मसुरेन्द्रसेवितपदां तत्त्वस्वरूपां शिवां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ १॥
जिनकी चरणों की सेवा स्वयं भगवान् श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु आदि देवनायक करते हैं, उन तत्त्वस्वरूपिणी, कल्याणकारिणी, करुणावरुणालया, श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ॥ 1॥
मुक्ताहारलसत्किरीटरुचिरां पूर्णेन्दुवक्त्रप्रभां
शिञ्जन्नूपुरकिंकिणीमणिधरां पद्मप्रभाभासुराम् ।
जो मोती की लड़ियों से सुशोभित मुकुट को धारण किये रमणीक मालूम होती हैं, जिनके मुख की प्रभा पूर्णचन्द्र के समान है, जो झनकारते हुए नूपुर, किंकिणी अर्थात करधनी तथा अनेक मणियाँ धारण किये हुए हैं, जो कमल की सी आभा से भासित हो रही हैं,
सर्वाभीष्टफलप्रदां गिरिसुतां वाणीरमासेवितां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ २॥
जो सबको अभीष्ट फल देने वाली हैं, जिनकी सेवा माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी स्वयं करती हैं, उन गिरिराजनन्दिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ॥ 2॥
श्रीविद्यां शिववामभागनिलयां ह्रींकारमन्त्रोज्ज्वलां
श्रीचक्राङ्कितबिन्दुमध्यवसतिं श्रीमत्सभानायिकाम् ।
जो श्रीविद्या हैं, जो भगवान् शंकर के वामभाग में विराजमान हैं, जो ‘ह्रीं’ बीजमन्त्र से सुशोभिता हैं, जो श्रीचक्रांकित बिन्दु के मध्य में निवास करती हैं तथा देवसभा की अधिनेत्री हैं,
श्रीमत्षण्मुखविघ्नराजजननीं श्रीमज्जगन्मोहिनीं
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ३॥
उन श्रीस्वामी कार्तिकेय और गणेशजी की माता जगन्मोहिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ॥ 3॥
श्रीमत्सुन्दरनायिकां भयहरां ज्ञानप्रदां निर्मलां
श्यामाभां कमलासनार्चितपदां नारायणस्यानुजाम् ।
जो अत्यंत सुन्दर स्वामिनी हैं, जो भयहारिणी, ज्ञानप्रदायिनी, निर्मला और श्यामला हैं, कमल पर विराजमान श्री ब्रह्माजी द्वारा जिनके चरण कमल पूजे गये हैं तथा श्री हरि विष्णु की जो अनुजा हैं;
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यरसिकां नानाविधामम्बिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ४॥
जो वीणा, वेणु, मृदंगादि वाद्यों में रस लेने वाली हैं, उन विचित्र लीलाविहारिणी करुणावरुणालया श्री मीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूं ॥ 4॥
नानायोगिमुनीन्द्रहृत्सुवसतीं नानार्थसिद्धिप्रदां
नानापुष्पविराजितांघ्रियुगलां नारायणेनार्चिताम् ।
जो अनेक योगिजन और मुनीश्वरों के हृदय में निवास करती हैं तथा विभिन्न प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति कराने वाली हैं, नाना प्रकार के पुष्प जिनके चरणों को सुशोभित कर रहे हैं, जो श्रीनारायण से पूजिता हैं
नादब्रह्ममयीं परात्परतरां नानार्थतत्वात्मिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि संततमहं कारुण्यवारांनिधिम् ॥ ५॥
जो नादब्रह्ममयी हैं, जो परे से भी परे हैं और नाना पदार्थों की तत्त्वस्वरूपा हैं, उन करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षी देवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ॥ 5॥
इति श्रीमच्छंकरभागवत: कृतौ मीनाक्षी पंचरत्नं संपूर्णम्।
Meenakshi Pancharatnam | मीनाक्षी पञ्चरत्नम् | Adi Shankaracharya
Lyrics: Traditional
Music: Rohit Kumar (Bobby)
Sitar: Pt. Sunil Kant
